गुरुवार, 19 जुलाई 2012

जिंदा तो रहूँ पर जिन्दा नहीं.........

जिंदगी ये आजकल किस मोड़ पर ले आई मुझे,
रिश्तों के बंधन में बंधा था , मैं कल तलक 
 क्यों आज कोई अपनाता नही मुझे।
इस हाल में हूँ आज मैं , कि 
जिन्दा हूँ पर जिन्दा नही.............
सोचता हूँ क्या वजह है  दुनिया तेरे तिरस्कार की ,
रहा करता था हरदम महफ़िलों में 
पर क्यूं आज नही मेरे पास भी।
लग रहा है जाने- अनजाने, शायद 
कोई पाप कोई अपराध हमसे हो गया 
पर.... यारो ऐसी सजा मत दो मुझे  मेरे अपराध की 
घुट के दम निकले मेरा, और न निकले आह भी 
मार दो या छोड़ दो मुझको, उसके इन्साफ पे 
मैं अकेला पापी नही इस जहान में 
ये जानते है आप भी ....
फिर ,ऐसी सजा मत दो मुझे ...
जिन्दा तो रहूँ पर जिन्दा नही ................