रविवार, 26 जुलाई 2009

kavita

काफी देर से वो वहां खड़ी थी,
जाने क्यों मुझे निहार रही थी,
कभी हंसती कभी मुस्कराती,
मंद मंद कुछ गुनगुनाती,
मैंने! पहले इधर उधर देखा, मौका ताडा
और इशारे से उसे बुलाया,
प्रत्युत्तर मैं उसने सिर्फ़ मुस्कराया,
उसकी मुस्कराहट ने मेरा हौसला बढाया,
आगे बढ़कर एक सवाल दगा,
लड़की से उसका परिचय माँगा,
अचानक ! वो हरकत में आई,
आगे बढ़कर थमी मेरी कलाई,
एक धागा निकला और बंधते हुए बोली ,
मैं आपकी बहन और आप मेरे भाई................

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