रविवार, 15 अगस्त 2010

"प्रेरणा"

याद आती हो जब तुम
अकेले में मुझे ,
रुलाती है तेरी वो प्यार भरी बातें ,
वो दौड़ के कहना आ छूले।
अक्सर ख़याल आता है दिल में ,
तुम इतनी दूर क्यों हो मुझसे,
सोचता हूँ, जहाँ तुम हो,
वहां मैं भी पहुंचु ,
छू न सकूँगा किन्तु तुमको।
दुःख तो है इस बात का,
मगर शिकवा नहीं है कोई,
बल्कि ख़ुशी है इससे,
कि "प्रेरणा" मिलती रहेगी मुझे,
निरंतर आगे बढ़ने कि तुमसे।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर सृजन, बधाई.

    मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर आपका हार्दिक स्वागत है, कृपया पधारें.

    जवाब देंहटाएं