गुरुवार, 13 अगस्त 2009

मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नहीं गाता,
दरबारों के लिए अभिनन्दन गीत नहीं गाता,
गौण भले हो जाऊं लेकिन मौन नहीं रह सकता मैं,
पुत्र मोह में शस्त्र त्याग कर द्रौंण नही हो सकता में,
कितने पहरेदार बिठा दो मेरी क्रुद्ध निगाहों पर,
में दिल्ली से बात करूँगा भीड़ भरे चौराहों पर,
कश्मीर जो ख़ुद सूरज के बेटे की राजधानी थी,
डमरू वाले शिवशंकर की जो घाटी कल्याणी थी,
कश्मीर जो इस धरती का स्वर्ग बताया जाता है,
जिस मिटटी को दुनिया भर मे अर्घ्य चढाया जाता,
कश्मीर जो डूब गया है अंधी गहरी खायी में,
फूलों की खुशबु रोटी है मरघट की तन्हाई मे,
मैं अग्निगंधा मौसम की बेला हूँ,
गंधों के घर बंदूकों का मेला हूँ,
मैं भारत की जनता का संबोधन हूँ,
आंसू के अधिकारों का उदबोधन हूँ,
मैं अविविधा परम्परा का chaaran हूँ,
आंखों के आंसू का उच्चारण हूँ,
इसलिए दरबारों को दर्पण दिखलाने निकला हूँ,
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ....................
बस नारों में गाते रहिएगा कश्मीर हमारा है,
छूकर देखो हर हिम्चोटी के नीचे इक अंगारा है,
दिल्ली अपना चेहरा देखे धुल हटाकर दर्पण की,
दरबारों की तस्वीरे भी हैं बेशर्म समर्पण की,
काश्मीर है जहाँ तमंचे हैं केशर की क्यारी में,
काश्मीर है रुंदन जहाँ बच्चों की किलकारी में,
काश्मीर है जहाँ तिरंगे झंडे फाड़े जाते हैं,
४७ के बंटवारे के घाव उघडे जाते हैं,
काश्मीर है जहाँ हौंसलों के दिल तोडेजाते हैं,
काश्मीर है जहाँ खुदगर्जी मेंजेलों से हत्यारे छोडे जाते है,
अपहरणों की रोज़ कहानी होती है,
धरती मैया पानी पानी होती है,
झेलम की लहरे भी आंसू लगती है,
ग़ज़लों की बहरे भी आंसूं लगती हैं,
मैं आंखों के पानी का संत्रास मिटाने निकला हूँ,
मैं घायल घाटी के दिल की....................
जिनको भारत की धरती न भाती हो,
भारत के झंडों से बदबू आती हो,
जिन लोगों ने माँ का आँचल फाडा हो,
दूध भरे सीने मे चाकू गाडा हो,
मैं गद्दारों को फांसी चढ़वाने निकला हूँ,
मैं घायल घाटी के दिल की....................
राजमहल को शर्म नहीं है घायल होती धरती पर,
भारत मुर्दाबाद लिखा है श्रीनगर की धरती पर,
मन करता है फूल चढ़ा दू लोकतंत्र की अर्थी पर,
भारत के बेटे ही ही ख़ुद निर्वासित हैं अपनी धरती पर,
वे भारत से खेल रहे हैं गैरों के बलबूते पर,
जिनकी नाक टिकी रहती थी हिन्दुस्तानी जूतों पर,
कश्मीर को बंटवारे का धंधा बना रहे है,
जुगनू को बैसाखी देकर चंदा बना रहे है,
फिर भी खून सने हाथो को न्योता है दरबारों का,
जैसे सूरज की किरणों पर कर्जा हो अंधियारों का,
कुलवंती दासी हो गई रखैलों की,
आज ज़रूरत है सरदारों पटेलों की,
क्या डरना अमेरिका के आकाओ से,
आँख मिलाओ दुनिया के दादाओं से,
अपने भारत के बाजू बलवान करो,
पाँच नहीं पाँच सो atom bam nirmaan करो,
मैं भारत को दुनिया का sirmour बनाने निकला हूँ ,
मैं घायल घाटी के दिल की....................
मैं bajrangbali को उनकी ताकत याद dilaata हूँ,
इसलिए मैं कविता को hathiyaar banakar गाता हूँ,
मैं घायल घाटी के दिल की....................


1 टिप्पणी:

  1. अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकारें कि आप साइंस की फील्ड में एक्टिव रहकर भी कविताएं लिख रहे हैं।
    आपकी कविता अतुकांत श्रेणी की है, इसलिए सही है। भाव जैसे जैसे आप लिखते जाएंगे परिपक्व होते जाएंगे।
    एक सलाह दूंगा कि दूसरों को खूब पढें, इससे आपकी रचनाओं में भी निखार आएगा।

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