रविवार, 23 अगस्त 2009

आख़िर क्यों .................

तेरे शहर में आने का ,जब भी मिला मौका मुझे ,
ढूंढा मैंने, तुझसे मुलाकात का ,कोई न कोई अवसर ।
बस, तेरी एक झलक पा लेने को मचल उठता है ये दिल,
और ये सोचकर , की तुम दिख्जोगी शायद वहां,
तेरी गलियों से मै गुजरता रहा हूँ अक्सर ।
तुझे देखकर ,नजर के सामने पाकर
साँसें रुक सी जाती है ,धड़कन थम सी जाती हैं ।
जी मै आता है तुझे जी भरकर देखूं , प्यार करूँ
किंतु सालती हैं मुझे तेरी बेरुखी, वो बेगानापन,
और निभाना औपचारिकताएं ।
कुछ मिलना इस तरह कि जैसे मै कोई अजनबी हूँ ,
मै जानना चाहता हूँ तेरे इस सब का सबब ,
आख़िर क्यों ? तुम मेरे पास होकर भी करीब नहीं ।

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